कोई सीख ना चाहा लेना

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एक ब्रिक्ष जो छाया देता
सुखद सनेह परोसा करता
खड़ा रहे हर पथीत के रस्ते
फिर भी कभी ना आहें भरता
एक ब्रिक्ष जो छाया देता
सुखद सनेह परोसा करता

बिन स्वार्थ के सबकुछ देना
उसके बदले कुछ ना लेना
सहनशीलता उसकी ऐसी
गिरकर भी चाहे जो देना
उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना

अडिग रहे हर इक ऋतुओ मे
लगे फल तो वो झुक जाता है
ज्ञान फली झुककर रहना तुम
सीख यही वो सिखलता है
प्राणी जॅन मे सुख बिखेरता
ऐसा उसका मरना जीना
उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना

हरियाली जग मे बिखेरता
कितना हरा-भरा जीवन है
सारी सुख-सुविधा है उससे
कितना सुखमय उसका तन है
कैसा उसका त्याग समर्पण

सुखमय सहज हुआ है जीना

उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना
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